अपराध/पुलिस

झाबुआ पुलिस के ये सब-इंस्पेक्टर केवल ‘रील’ नहीं बल्कि ‘रीयल’ लाइफ में भी हीरो

झाबुआ पुलिस के ये सब-इंस्पेक्टर केवल ‘रील’ नहीं बल्कि ‘रीयल’ लाइफ में भी हीरो

छोटे-छोटे कामों के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर पर चक्कर काटते लोग, इंसाफ के लिए न्यायालय के बाहर खड़ी भीड़, भ्रष्टाचार की खबरों से भरे पड़े अखबार और प्रशासनिक इकाइयों के प्रति आक्रोश से भरा सोशल मीडिया किस बात का सबूत है?

सहानुभूति के चलते अपनी लग्जरी गाड़ी से उतर कर बीच सड़क पर किसी लाचार मरीज का इलाज करते किसी डॉक्टर को आखरी बार कब देखा था आपने? जब तक कोई शिकायत न करे तब तक सड़क के गड्ढे और बंद पड़ी स्ट्रीट लाइटें संबंधित विभाग के कर्मचारियों को क्यों दिखाई नहीं देती?

संवेदना और मानवता के अभाव में जब कोई “ट्रेंड से हटके” काम करता है तो प्रशंसा तो बनती है।

कल रात राजगढ़ नाका का क्षेत्र में 15 से 20 लड़के आपस में लड़ाई झगड़ा करते नजर आए। रात 10:30 बजे का समय था। नशे में धुत्त युवाओं की अश्लील गाली-गलौज एवं उन्माद से लोग खौफजदा थे। कुछ देर के लिए अफरा-तफरी का माहौल बना। घटनाक्रम मेरे सामने ही घटित हो रहा था। तभी अपनी दिनभर की ड्यूटी खत्म कर घर को जा रहे सब इंस्पेक्टर नरेंद्र सिंह राठौड़ का वहां से निकलना हुआ।

आमतौर पर दिनभर की तनावपूर्ण ड्यूटी कर लेने के बाद शारीरिक और मानसिक रूप से शिथिल व्यक्ति चीजों को नजरअंदाज करते हुए घर का रुख कर लेता है।

लेकिन सब इंस्पेक्टर साहब अपनी कार से उतरे और अकेले ही अपराधि तत्वों को खदेड़ना चालू कर दिया।

नशे की हालत में और खासकर भीड़ में अपराधियों के हौसले बुलंद रहते हैं, इस समय क्या आम नागरिक और क्या पुलिस!

फिर भी किसी वन-मैन-आर्मी की तरह 10 मिनट के अंदर अंदर सब-इंस्पेक्टर द्वारा ना सिर्फ किसी बड़ी घटना को होने से पहले रोक दिया गया बल्कि मुख्य मार्ग पर पुनः शांति बहाल कर दी गई।

राठौड़ साहब भी किसी आम कर्मचारियों की तरह आंखें बंद करके अपने घर पर जाकर सुकून से परिवार के साथ समय बिता सकते थे। थाने पर फोन करके ड्यूटी कर रहे कर्मचारियों को सूचित कर सकते थे।

लेकिन नहीं, कुछ लोग हालात से चाहे समझौता कर लें पर उसूलों से समझौता नहीं करते!

इस साहसी कृत्य का मैं साक्षी भी हूं और इससे अभिभूत भी।

सलाम है सब इंस्पेक्टर नरेंद्र सिंह राठौड़ जैसे पुलिसकर्मियों के देशप्रेम के इस सच्चे जज्बे को जो वर्दी की शान में कभी कमी नहीं आने देते..

हिमांशु त्रिवेदी, भील भूमि समाचार, Reg. MPHIN/2023/87093

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