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झाबुआ: सफाई कर्मियों की हड़ताल खत्म नहीं स्थगित हुई है! 

✍️ झाबुआ: हड़ताल खत्म नहीं स्थगित हुई है!

8 दिन से झाबुआ नगर में हड़ताल पर बैठे सफाई कर्मचारियों ने नगर हित में हड़ताल की स्थगित

किसी के घर का किराया 3 महीने से नहीं भरा है, किसी के घर की लाइट कटी हुई है, किसी के घर पर रात को 1:00 बजे तक लोन की रिकवरी करने वाले बैठे रहते हैं, किसी के बच्चे फीस न भरने के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे हैं, किसी के घर पर अनाज के दो दाने तक नहीं है…

25 तारीख तक डलने वाली बकाया तीन महीने में से एक महीने की तनख्वाह से पुराने उधार भी चुकता नहीं होंगे, हाथ में चार पैसे आना तो बहुत दूर की बात।

इतनी विषम परिस्थितियों के बावजूद भी केवल नगर वासियों की परेशानी को देखते हुए सफाई कर्मियों ने हड़ताल को स्थगित करने के रूप में समाज पर उपकार किया है।

केवल और केवल नगर वासियों को आ रही समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए सफाई कर्मियों द्वारा यह आठ दिवसीय हड़ताल स्थगित की गई है। अध्यक्ष कालिया बसोड़ ने अपने वक्तव्य में कहा कि दीपावली हम सबका सबसे बड़ा त्यौहार है। हम लोग अपने 3 महीने के बकाया वेतन को लेकर हड़ताल कर रहे थे। हमारी मांग थी के 25 तारीख से पहले 2 महीने का वेतन एवं हर महीने की 20 तारीख के पहले पिछले महीने का वेतन दिया जाए। यह मांग पूरी नहीं होने के बावजूद भी केवल त्यौहार एवं नगर वासियों की चिंता करते हुए हमने अपनी 8 दिन की हड़ताल को स्थगित किया है। अध्यक्ष कालिया बासोड ने कहा कि हमारी मांग तो 50% ही मानी गई है। इसलिए यह कहना कि प्रशासन या किसी अन्य के हस्तक्षेप के कारण हड़ताल खत्म हुई है यह समाज के त्याग का अपमान करने के बराबर है।

▪️प्रशंसनीय

समय-समय पर विभिन्न षड्यंत्रकारी विचारधाराओं के हस्तक्षेप के बावजूद सफाई कर्मियों ने अनावश्यक उग्रता का प्रदर्शन नहीं करते हुए शंतिपूर्ण ढंग से प्रदर्शन किया।

इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि समाज को संदेश देने, अपनी ताकत दिखाने या सरकार को घुटने पर लाने की ठन जाती, तो यह वर्ग इतना शक्तिशाली है कि बाजार बंद हो जाते और सड़कें प्रदर्शनकरियों से सराबोर हो जाती।

▪️बात साफ है

नगर वासियों की चिंता और धार्मिक पर्व की गरिमा को ध्यान में रखते हुए हड़ताल स्थगित की गई है। यदि लिखित में दिए गए आश्वासनों को पूरा नहीं किया जाता है तो उग्र आंदोलन की चेतावनी भी दी गई है।

✍️8 दिनों में हमने भी दिखा दिया कि हम कितने दूध के धुले हैं

सफाई कर्मियों द्वारा की गई मात्रा 8 दिन की हड़ताल और नगर का कोई वार्ड ऐसा नहीं बचा जहां रहवासियों ने गंदगी फैलाने में कोई कमी छोड़ी हो। कुछ लोगों को छोड़ दें तो ज्यादातर लोगों ने अपने-अपने घर का कचरा ट्रेंचिंग ग्राउंड पर ले जाकर फेंकने की बजाए अपने गली मोहल्ले में खाली पड़े मकान या गली के कोनों में फेंकना सही समझा।

चाहे कितनी गंदगी हो जाए, बदबू आए, गाय प्लास्टिक खाकर मर ही क्यों ना जाए लेकिन अधिकांश लोग कचरे को ट्रेंचिंग ग्राउंड पर फेंकने नहीं गए तो नहीं गए…

हिमांशु त्रिवेदी, संपादक, भील भूमि समाचार

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