संपादकीय: भाजपा की आलोचना! पार्टी के अनुसार ‘आदिवासियों का पलायन’ कोई समस्या है ही नहीं!
स्थानीय नेताओं ने दी मंत्री जी के बयान को मौन स्वीकृति!
पत्रकार वार्ता में जब झाबुआ जिले में पलायन की समस्या के बारे में मंत्री महोदय से पूछा गया तो मंत्री जी का जवाब आश्चर्यचकित करने वाला था।
मंत्री महोदय के अनुसार गांव के लोग नगरों में और नगरों के लोग महानगरों में बेहतर अवसरों की तलाश में जाते हैं, इसे समस्या नहीं कहते। लोग बेहतर अवसरों की तलाश में विदेश भी जाते हैं, हर व्यक्ति बेहतर अवसर की तलाश में अन्य स्थानों पर जा ही रहा है। इसे पलायन की समस्या कहना ठीक नहीं!!
मंत्री जी के बयान से यह स्पष्ट है कि झाबुआ जिले के भारतीय जनता पार्टी के जनप्रतिनिधि जिले की सबसे मूलभूत समस्या की राज्य एवं केंद्रीय स्तर तक सही तरीके से प्रस्तुति ही नहीं कर पा रहे हैं!!
ज़मीन आसमान का फर्क है
महानगरों में रहने वाले और विदेशों में जाने वाले लोग अपनी लाख रुपए महीने की तंखा को पांच लाख रुपए महीना बनाने के लिए विस्थापन करते हैं, जबकि, झाबुआ के गरीब आदिवासी अपने परिवार को दो वक्त की रोटी दे पाने की मजबूरी में विस्थापन करते हैं जिसे पलायन की समस्या कहते हैं।
चॉइस बनाम नेसेसिट
यह चॉइस (चुनाव) नहीं नेसेसिटी (अनिवार्यता) है। वहां स्ट्रगल फॉर एक्सीलेंस है( श्रेष्ठता के लिए संघर्ष ), यहां स्ट्रगल फॉर एक्सिस्टेंस है( अस्तिव्त के लिए संघर्ष )… फिर दोनों समान कैसे हुए? दोनों में ज़मीन आसमान का फर्क है।
झाबुआ जिले में 50 प्रतिशत से अधिक आबादी सालाना पलायन करती है। ये बहुत बड़ा आंकड़ा है। झाबुआ जिला मध्य प्रदेश के 52 जिलो में सबसे गरीब जिला है।
आरक्षण भी तो प्राथमिकता ही है
जिस प्रकार देश में बेरोज़गरी एक बड़ी समस्या है, जिससे हर वर्ग पीड़ित है। लेकिन इसके बावजूद सबसे अधिक जरूरतमंद और पिछड़े वर्गों को आरक्षण (प्राथमिकता) का लाभ दिया जाता है। क्या इसी आधार पर ‘श्रेष्ठता के लिए संघर्ष करने वालों’ की अपेक्षा ‘अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों को’ प्राथमिकता नहीं मिलनी चाहिए। क्या प्राथमिकता पर अन्य क्षेत्रों की जगह आदिवासी क्षेत्रों में औद्योगिक विकास और रोज़गार के विशेष प्रयास नहीं किए जाने चाहिए?
अब यदि भाजपा के अनुसार पलायन कोई समस्या ही नहीं है, तो पार्टी आदिवासी क्षेत्रों के लिए प्राथमिकता पर विशेष प्रयासों पर भला जोर क्यों देगी?
हिमांशु त्रिवेदी
प्रधान संपादक
भील भूमि समाचार पत्र
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