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आदिवासी महिलाएं मंगलसूत्र ना पहनें, सिंदूर ना लगाएं, व्रत उपवास न रखें!

झाबुआ में आदिवासी युवाओं द्वारा मानगढ़ भीलप्रदेश महारैली में दिए गए कथनों का जमकर विरोध

आदिवासी संस्कृति बचाने के लिए भील प्रदेश बनाए जाने की मांग को लेकर 18 जुलाई को राजस्थान के मनगढ़ में भारत आदिवासी पार्टी के साथ जयस आदि संगठनों द्वारा महारैली एवं आदिवासी समाज सभा का आयोजन किया गया। 

आयोजन में 4 राज्यों के 49 जिलों से आए लाखों आदिवासी समाज जन शामिल हुए। कथित रूप से मंच से सभा को संबोधित करते हुए एक महिला नेत्री द्वारा आह्वान किया गया कि आदिवासी महिलाएं सिंदूर न लगाएं, मंगलसूत्र ना पहनें एवं उपवास या व्रत नहीं रखें! बाद में अपना वक्तव्य देने वाले अन्य लीडरों द्वारा भी आदिवासी हिंदू नहीं है के नारेटिव पर लगातार भाषण दिए गए। उक्त वक्तव्यों का देशव्यापी विरोध सामने आ रहा है।

सूत्रों के मुताबिक झाबुआ एवं अलीराजपुर जिलों के आदिवासी संगठनों द्वारा सोशल मीडिया पर इस आयोजन एवं आदिवासी महिलाओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले हिंदू विरोधी बयानों का कड़ा विरोध किया जा रहा है।

आक्रोशित आदिवासी युवा वर्ग द्वारा इसे आदिवासी संस्कृति बचाने के नाम पर हिंदू विरोधी एजेंडा चलाए जाने का षड्यंत्र बताया जा रहा है।

अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष एवं भाजपा से पूर्व विधायक कल सिंह भाबर द्वारा भील प्रदेश की मांग की आड़ में इसे विधर्मियों द्वारा सनातन संस्कृति नष्ट करने एवं अलगाववाद पैदा करने का मंसूबा बताया गया।

उल्लेखनीय है कि बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रौत चुनाव जीतने के बाद से ही अपने भाषणों में लगातार आदिवासी हिंदू नहीं है का नैरेटिव गढ़ने में लगे हैं जिसे आगे बढ़ाते हुए आदिवासी परिवार नामक संगठन की संस्थापक मेनका डामोर द्वारा सिंदूर ना लगाने एवं मंगलसूत्र ना पहनने का मंच से आह्वान किया गया।

इन बयानों के आधार पर भारत आदिवासी पार्टी एवं जयस समेत भील प्रदेश आंदोलन से जुड़े लोगों को सोशल मीडिया पर आदिवासी युवाओं द्वारा जमकर ट्रोल किया जा रहा है।

विरोध कर रहे युवाओं का कहना है कि ‘मांग’ भील प्रदेश की की जा रही है और ‘आह्वाहन’ सिंदूर मंगलसूत्र उतारने का किया जा रहा है? यह तर्कहीन होने के साथ-साथ स्पष्ट रूप से आदिवासी समाज को सनातन धर्म से दूर करने का षड्यंत्र है।

मांग में सिंदूर एवं गले में मंगलसूत्र पहने खुद जयस पदाधिकारियों की पत्नियों समेत पत्थलगढ़ी आंदोलन की नेत्री बबीता कश्यप व अन्य जयस लीडरों की फोटो सोशल मीडिया पर विरोध कर रहे आदिवासी संगठनों द्वारा पोस्ट की जा रही है।

मानगढ़ भील प्रदेश सभा में जहां आदिवासियों की संस्कृति बचाने की चर्चा होनी चाहिए थी वहां सभा में आदिवासी युवतियां मुस्लिम युवकों के साथ बैठी नजर आई। विरोधकर्ता युवा जनजाति संगठन के संरक्षक लक्ष्मण बारिया ने इस विचारधारा से जुड़ी 8 आदिवासी महिला पंचायत मुखियाओं और उनके मुसलमान पतियों की सूची भी सोशल मीडिया पर शेयर की।

ट्रोल करते हुए लिखा गया कि यह लोग केवल हिंदू धर्म को टारगेट करते हैं। ये लोग गले में ईसाई क्रॉस लटकाए घूमती आदिवासी महिलाओं को क्रॉस नहीं पहनने की नसीहत क्यों नहीं देते? सांसद राजकुमार रौत लगातार मंचों से आदिवासी हिंदू नहीं है का नारेटिव चला रहे हैं लेकिन आदिवासियों के ईसाई धर्मांतरण पर मंच से एक शब्द क्यों नहीं बोलते?

राजस्थान सरकार में आदिवासी क्षेत्रीय विकास मंत्री बाबूलाल खराड़ी द्वारा भील प्रदेश की मांग को अस्वीकार करते हुए कहा गया की “जातियों के आधार पर अलग राज्य की मांग करना सही नहीं है”।

धर्म और जाति के नाम पर पहले देश का बंटवारा हुआ अब जातियों के नाम पर प्रदेशों के बंटवारे की मांग हो रही है। ऐसा ही चलता रहा तो कल भिलाला प्रदेश और पटेलिया जिले की मांग को भी स्वीकार करना पड़ेगा!

जैन प्रदेश और पारसी प्रदेश की मांग भी संस्कृति संरक्षण के तर्क के आधार पर स्वीकारनी पड़ेगी।

जयस समर्थित भील प्रदेश महारैली मानगढ़ में हिंदुओं की धार्मिक भावनाएं आहत करने वाली बयान बाजी के बाद जयस के संस्थापक महेंद्र कन्नौज का भाजपा में शामिल हो जाना भी किसी संयोग से कम नहीं है!

नोट: समाचार में प्रयुक्त सोशल मीडिया अकाउंट से लिए गए फोटो की प्रमाणिकता की पुष्टि भील भूमि समाचार नहीं करता।

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