प्रशासनिक/राजनैतिक

दिल्ली चुनाव 2025: भाजपा की ऐतिहासिक जीत, केजरीवाल पराजित – क्या हैं असली कारण?

दिल्ली की राजनीति में इस बार ऐसा उलटफेर हुआ, जिसकी शायद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) बुरी तरह हार गई, और भाजपा ने दिल्ली में 27 साल बाद सरकार बनाने का रास्ता साफ कर लिया। खुद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी चुनाव हार गए। इस चुनाव के नतीजे महज़ आंकड़ों का खेल नहीं हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि दिल्ली के मतदाता किस तरह अपनी प्राथमिकताएँ बदल चुके हैं।

लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है: आखिर यह बदलाव हुआ क्यों?

भाजपा की ऐतिहासिक जीत के पीछे मुख्य कारण:

1. मोदी फैक्टर और राष्ट्रीय राजनीति का असर

भाजपा की जीत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता सबसे बड़ा फैक्टर रही। दिल्ली में हुए रोड शो और रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी, जिससे यह साफ हुआ कि मोदी का करिश्मा अभी भी कायम है।

➡ मोदी की मजबूत छवि:

लोगों को मोदी की ईमानदारी और निर्णायक नेतृत्व पर भरोसा है।

वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती ताकत और विकासशील देश से विकसित देश बनने की ओर बढ़ते कदम दिल्ली के पढ़े-लिखे वर्ग को प्रभावित कर रहे थे।

➡ ‘आप’ की तुलना में मजबूत नेतृत्व:

लोग भाजपा के “डबल इंजन सरकार” के तर्क से प्रभावित हुए कि दिल्ली और केंद्र में एक ही पार्टी की सरकार होने से विकास तेजी से होगा।

केजरीवाल की छवि पर भ्रष्टाचार के आरोपों ने बुरा असर डाला, जिससे उन्हें मोदी के सामने कमजोर नेता के रूप में देखा जाने लगा।

2. मध्यम वर्ग का ‘आप’ से मोहभंग क्यों हुआ?

मध्यम वर्ग ने 2015 और 2020 में ‘आप’ को जमकर वोट दिया था, लेकिन इस बार उसका झुकाव भाजपा की ओर हो गया।

➡ टैक्सपेयर्स को मिला धोखा महसूस हुआ:

‘आप’ ने मुफ्त योजनाएँ चलाईं, लेकिन इसका पूरा बोझ मध्यम वर्ग के करदाताओं पर पड़ा।

भाजपा ने प्रचार किया कि “टैक्स देने वाले मेहनती लोगों के पैसों से मुफ्त योजनाएँ चलाना अन्याय है।”

➡ महंगाई और आर्थिक मुद्दे:

दिल्ली में बिजली, पानी, हाउस टैक्स, पेट्रोल-डीजल पर सब्सिडी देने के बावजूद महंगाई बढ़ती गई।

व्यापारियों को दिल्ली सरकार से किसी प्रकार की व्यापारिक राहत नहीं मिली, जिससे उनकी नाराजगी बढ़ी।

➡ व्यापारियों की नाराजगी:

दिल्ली के व्यापारी वर्ग ने इस बार खुलकर भाजपा का समर्थन किया, क्योंकि ‘आप’ की सरकार पर गलत नीतियों और भ्रष्टाचार के आरोप लगे।

भाजपा ने व्यापारियों के लिए टैक्स छूट और व्यापार अनुकूल नीतियों का वादा किया, जो आकर्षक साबित हुआ।

3. ‘आप’ की कमजोर होती छवि – भ्रष्टाचार और गिरती लोकप्रियता

कभी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी अब खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी हुई थी।

➡ शराब नीति घोटाला:

भाजपा ने ‘आप’ सरकार की शराब नीति में भ्रष्टाचार को एक बड़ा मुद्दा बना दिया।

इस घोटाले के कारण मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी हुई, जिससे पार्टी की छवि को गहरा धक्का लगा।

➡ फ्री योजनाओं का बैकलैश:

शुरुआती दौर में फ्री बिजली, पानी और बस सेवा ने जनता को आकर्षित किया था, लेकिन बाद में लोगों को महसूस हुआ कि इससे सरकार की वित्तीय स्थिति कमजोर हो रही है।

भाजपा ने जनता के बीच यह नैरेटिव बनाया कि “फ्री की योजनाएँ अंततः दिल्ली को कर्ज में डुबो रही हैं।”

➡ केजरीवाल सरकार की वादाखिलाफी:

2020 में किए गए रोजगार, महिला सुरक्षा और प्रदूषण नियंत्रण के वादे पूरे नहीं हुए।

भाजपा ने प्रचार किया कि “केजरीवाल केवल वादे करते हैं, लेकिन उन पर अमल नहीं करते।”

4. भाजपा की जमीनी रणनीति और संगठित चुनाव अभियान

भाजपा ने इस बार दिल्ली में मजबूत संगठनात्मक रणनीति अपनाई, जो ‘आप’ से बेहतर साबित हुई।

➡ बूथ-स्तर पर जबरदस्त तैयारी:

भाजपा ने हर विधानसभा में जमीनी कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया, जिससे हर मतदाता तक पार्टी की बात पहुँची।

दिल्ली में कई जगहों पर RSS और अन्य हिंदू संगठनों का समर्थन भी भाजपा को मिला।

➡ हिंदुत्व और राष्ट्रवाद की अपील:

भाजपा ने अपने प्रचार में यह दिखाने की कोशिश की कि ‘आप’ की सरकार हिंदू विरोधी है (हनुमान चालीसा विवाद, छठ पूजा रोकने की कोशिश)।

मोदी सरकार द्वारा राम मंदिर के उद्घाटन और काशी-मथुरा विकास कार्यों ने दिल्ली के मतदाताओं पर गहरी छाप छोड़ी।

‘आप’ की करारी हार के मुख्य कारण

5. अरविंद केजरीवाल की हार: आत्मविश्वास या अति-आत्मविश्वास?

अरविंद केजरीवाल नई दिल्ली सीट से 11,500 वोटों से हार गए, जो इस चुनाव का सबसे बड़ा झटका था।

➡ “केजरीवाल अजेय नहीं हैं” – यह धारणा बनी:

पहले ‘आप’ के समर्थकों को लगता था कि केजरीवाल को हराना नामुमकिन है, लेकिन इस बार यह मिथक टूट गया।

भाजपा ने ‘आप’ सरकार के भ्रष्टाचार के आरोपों को मुद्दा बना दिया, जिससे उनकी लोकप्रियता घटी।

➡ केजरीवाल का दिल्ली से ध्यान हटना:

केजरीवाल पंजाब और गुजरात में विस्तार पर ध्यान दे रहे थे, जिससे दिल्ली के लोगों को लगा कि वे अब राज्य में गंभीर नहीं हैं।

भाजपा ने प्रचार किया कि “केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने के बजाय प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रहे हैं।”

6. ‘आप’ की अंदरूनी गुटबाजी और असंतोष

मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन के जेल जाने के बाद पार्टी में नेतृत्व संकट आ गया।

कई विधायक और कार्यकर्ता नाराज थे कि केजरीवाल केवल अपने चहेतों को ही प्रमोट कर रहे हैं।

7. कांग्रेस की निष्क्रियता और आप के लिए संकट

कांग्रेस ने कोई मजबूत प्रचार नहीं किया, जिससे उसके पारंपरिक वोटरों ने भाजपा को समर्थन देना शुरू कर दिया।

भाजपा ने कांग्रेस के वोट बैंक को अपने पक्ष में मोड़ने में सफलता पाई।

क्या दिल्ली में राजनीति की दिशा पूरी तरह बदल चुकी है?

भाजपा की यह जीत केवल एक चुनावी परिणाम नहीं, बल्कि दिल्ली की जनता की बदलती सोच का प्रतिबिंब है।

➡ ‘आप’ के लिए अब आगे की राह कठिन होगी।

➡ भाजपा को यह साबित करना होगा कि वह सिर्फ चुनाव जीतने के लिए नहीं, बल्कि दिल्ली के विकास के लिए आई है।

हिमांशु त्रिवेदी, संपादक, भील भूमि समाचार

 

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