ना गलत करूंगा, ना गलत का साथ दूंगा! विधायक विक्रांत भूरिया बनाम मथियास भूरिया!
अवैध शराब परिवहन विरोध पर मथियास को मिला विक्रांत का 'असहयोग!'
अवैध गतिविधियों के विरुद्ध आवाज उठाना आसान नहीं। विशेषतौर पर यदि अवैध गैतिविधियों का आरोप लगाने वाले व्यक्ति की स्वयं की आपराधिक पृष्ठभूमि हो तो समाज उसे गंभीरता से नहीं लेता।
इसी प्रकार आरटीआई लगाने में भी कोई बुराई नहीं लेकिन जब आरटीआई अवैध वसूली का हथियार बन जाए तब समाजसेवियों और पत्रकारों को भी इज्जत से नहीं देख जाता।
अवैध शराब परिवहन के विरुद्ध अपनी आवाज उठा रहे राणापुर ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष मथियास भूरिया ने कांग्रेस विधायक विक्रांत भूरिया द्वारा उन्हें सहयोग न किए जाने की बात कहीं।
विधायक विक्रांत भूरिया
‘ना गलत करूंगा ना गलत का साथ दूंगा’ की विचारधारा पर चलने की बात करने वाले विधायक विक्रांत भूरिया अपनी ही पार्टी के मथियास भूरिया के मामले में ‘असहयोग’ की मुद्रा में हैं।
देवझरी लॉ कॉलेज भूमि आवंटन मामले में जिला कलेक्टर नेहा मीना पर अनावश्यक दबाव बनाकर अराजकता फैलाने वाले तत्वों पर नकेल कसना के साथ साथ विपक्ष में होने के बावजूद प्रशासन का सहयोग करना विधायक विक्रांत भूरिया की “ना गलत करूंगा ना गलत का साथ दूंगा” की विचारधारा को सत्यापित करता है।
बेहिसाब बिजली के बिलों से परेशान हो रही झाबुआ की जनता के लिए आवाज उठाने वाले विक्रांत भूरिया हमेशा से ही अन्याय एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ मुखर नज़र आते हैं।
हाल ही में हुए प्रकरण में ‘जाति’ से ऊपर ‘न्याय’ को स्थान देते हुए विक्रांत भूरिया ने षडयंत्रपूर्वक जेल में डाले गए दो ओबीसी पार्षदों को एट्रोसिटी मामले में जेल से रिहा कराने का साहसी कदम उठाया था। “ना गलत करूंगा ना गलत का साथ दूंगा!”
कांग्रेस के मथियास भूरिया द्वारा कहा गया कि यदि आदिवासी जनप्रतिनिधि अवैध गतिविधियों के विरुद्ध ‘आदिवासी’ का साथ नहीं देंगे तो समाज उन्हें बता देगा!
मथियास भूरिया
उल्लेखनीय है कि आदिवासी समाज से आने वाले भाजपा जिला अध्यक्ष भानु भूरिया पहले ही पूर्व में जिला बदर की कार्यवाही से गुजर चुके मथियास भूरिया को आरटीआई एक्टिविस्ट बता चुके हैं! आरटीआई एक्टिविस्ट होना तो कोई बुरी बात नहीं, फिर भाजपा जिलाध्यक्ष का इशारा किस ओर था?
कुछ विचारकों का मानना है कि जिसे अवैध बोलकर विरोध किया जा रहा है उसे व्यवहारिक तौर पर अनाधिकृत रूप से वृहद रोज़गार के अवसर पैदा करने के जरिए के रूप में भी देखा जाना चाहिए। ज़मीनी तौर पर बढ़ती बेरोजगारी को दृष्टिगत रखते हुए क्या इस तर्क को अनदेखा किया जा सकता?
डेढ़ साल के अल्प शासन काल में झाबुआ के कई मंदिरों को जीर्णोद्धार एवं नवीन निर्माण के लिए दिए गए लाखों रुपए आज भी कांतिलाल भूरिया एवं विक्रांत भूरिया के शासनकाल की उपलब्धियां को जीवंत रखे हुए हैं।
‘ना गलत करूंगा ना गलत का साथ दूंगा’ की विचारधारा पर बने रहना वो भी ऐसे समय जब कांग्रेस को पुराने कार्यकर्ताओं की सबसे ज्यादा जरूरत हो यह दर्शाने के लिए काफी है कि बतौर विपक्ष ही सही विक्रांत के रहते झाबुआ का नेतृत्व कुशल हाथों में है।