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झाबुआ: हाईकोर्ट ने मथियास भूरिया के जिला बदर आदेश को किया रद्द

5 महीने बाद आया फैसला, पहले आता तो सजा से मिल सकती थी राहत

झाबुआ प्रशासन ने लोक व्यवस्था और शांति बनाए रखने के उद्देश्य से मथियास पिता कालू भूरिया (उम्र 47, निवासी दोतड़, थाना रानापुर) को छह माह के लिए जिला बदर करने का आदेश जारी किया था।

कलेक्टर एवं जिला दंडाधिकारी नेहा मीना ने मध्यप्रदेश राज्य सुरक्षा अधिनियम, 1990 की धारा 5 (क) और (ख) के तहत पुलिस अधीक्षक पद्म विलोचन शुक्ल के प्रतिवेदन के आधार पर यह कार्रवाई की थी।

मथियास भूरिया के खिलाफ थाना रानापुर और थाना झाबुआ में आबकारी अधिनियम, शासकीय कार्य में बाधा डालने समेत अन्य अपराध दर्ज थे। प्रशासन का मानना था कि उसकी गतिविधियों से रानापुर और झाबुआ कस्बे की शांति व्यवस्था प्रभावित हो रही थी और आम नागरिक भय के माहौल में जी रहे थे।

22 अगस्त 2024 को उसके खिलाफ एक और मामला धारा 228 भारतीय न्याय संहिता, 2023 के तहत दर्ज किया गया था, जिसके बाद प्रशासन ने झाबुआ सहित आसपास के जिलों धार, रतलाम, अलीराजपुर, खरगोन और बड़वानी से भी उसे छह माह के लिए निष्कासित कर दिया था।

हाई कोर्ट में चुनौती और आदेश रद्द

मथियास भूरिया ने इस आदेश के खिलाफ मध्यप्रदेश हाई कोर्ट, इंदौर में रिट पिटीशन (WP-29627-2024) दाखिल की।

उनके वकील अंशुमान श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि प्रशासन ने पहले के अपराधों को आधार बनाकर बार-बार जिला बदर की कार्रवाई की, जबकि कई मामलों में पहले भी राहत दी गई थी।

हाई कोर्ट के न्यायाधीश सुबोध अभ्यंकर ने सुनवाई के दौरान पाया कि जिला बदर आदेश में 22 अगस्त 2024 को दर्ज अपराध संख्या 556/2024 को भी शामिल किया गया था, जबकि 20 अगस्त 2024 को जारी कारण बताओ नोटिस में इसे शामिल नहीं किया गया था।

इसके अलावा, पिछला गंभीर अपराध 2018 में दर्ज हुआ था, और उसके बाद केवल एक मामूली मामला दर्ज हुआ, जिसे आधार बनाकर कठोर निर्णय लेना उचित नहीं था।

इन तथ्यों के आधार पर, हाई कोर्ट ने जिला बदर आदेश (दिनांक 11 सितंबर 2024) और कारण बताओ नोटिस (दिनांक 20 अगस्त 2024) को रद्द कर दिया और मथियास भूरिया को राहत प्रदान की।

फैसले के बाद, मथियास भूरिया ने अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर लिखा:

“सत्यमेव जयते! सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं।”

उनके इस बयान ने सोशल मीडिया पर चर्चा पैदा कर दी। इस मामले में प्रशासन और न्यायिक प्रक्रिया की गति को लेकर भी सवाल खड़े होते हैं कि यदि न्याय में देरी होती है, तो वह अन्याय के समान हो सकता है। 

हिमांशु त्रिवेदी, संपादक, भील भूमि समाचार, Reg.MPHIN/2023/87093

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