महामहिम राष्ट्रपति और यशस्वी प्रधानमंत्री से सम्मानित अब तक के सबसे प्रभावशाली प्रशासनिक नेतृत्व की छवि धूमिल करता नाम, कथित रेत माफिया “गोपाल सोनी” फिर सुर्खियों में

“जन सुनवाई में आदिवासी संगठन के कार्यकर्ताओं द्वारा गोपाल सोनी नाम के व्यक्ति के विरुद्ध जिला प्रशासन से कार्यवाही की अपील”
(यह लेख प्रशासन को आश्वस्त और प्रेरित करने का प्रयास है कि जनता उनके साथ है — बशर्ते वे इस चुनौती को स्वीकारें)
आरोपों की इतनी लंबी लिस्ट…लेकिन प्रशासन मौन?
कौन है ये रेत माफिया गोपाल सोनी??
- कथित रूप से आदिवासी अंचल के हर विचारधारा के संगठन जिस रेत माफिया के विरुद्ध आंदोलित; अनेक बार जनसुनवाई में हुई शिकायत
- कथित रूप से ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों के युवाओं को सट्टे खेलना सिखाना, फिर कर्जदार बनाना, फिर घर में चोरी कर सट्टे में हारे पैसे चुकाने का दबाव बनाने का आरोपी
- कथित सूदखोरी का सरगना, 10% कमरतोड़ ब्याज का कुचक्र, आत्महत्या जिसका अंत
- कथित रूप से निर्दोष आदिवासी कर्मचारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के लिए झूठा आवेदन दिया; जनजाति संगठन ने ज्ञापन देकर युवक का भविष्य बर्बाद होने से बचाया
- आदिवासी संगठन जयस ने भी कई बार दिए हैं शिकायती आवेदन
- कथित रूप से खुद पर एट्रिसिट एक्ट के अंतर्गत जांच चल रही है
- कथित रूप से सीसीटीवी कैमरों में रिकॉर्डेड मामूली झगड़ों में हथियार लेकर बीच बाजार मारपीट करने का आरोपी
- कथित रूप से व्यापारियों के क्रिकेट टूर्नामेंट (वीपीएल) में आदिवासी समेत हर वर्ग के अंपायरों और खिलाड़ियों पर जलते पटाखे फिंकवाने का आरोपी
- कथित रूप से बाबेल चौराहा स्थित प्रतिष्ठान के विवाद में “व्यापारी संघ ने पैसे खा लिए” ऐसा अर्थहीन तथ्यहीन प्रचार कर पीड़ित ग्रामीणों को गुमराह कर व्यापारी संघ की छवि खराब करना और दो समुदायों को लड़वाने का कुत्सित प्रयास करने का आरोपी, इत्यादि
- ग्रामीण और नगर हर वर्ग पीड़ित
झाबुआ का वर्तमान प्रशासनिक एवं पुलिस नेतृत्व जिले को अपराध मुक्त जिला बनाने की दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं। लेकिन सुशासन की इस क्रांतिकारी लहर में अवरोध उत्पन्न करते ये अपराधी तत्व कब तक सिस्टम का मज़ाक बनाते रहेंगे?
कौन गोपाल सोनी?
स्थानीय स्तर पर चर्चित यह नाम अब झाबुआ जिले में अवैध खनन, ओवरलोड रेत परिवहन, सूदखोरी और सट्टे के मुख्य खाईवाल के रूप में अनेक अवैध मामलों में बार-बार सामने आ रहा है।
सूत्र बताते हैं कि गोपाल की सरपरस्ती में रात 11 बजे के बाद भारी-भरकम डंपर — जिन पर 65-70 टन रेत लदी होती है — बिना रॉयल्टी और बिना किसी डर के सड़कों पर दौड़ते हैं। जबकि अधिकृत भार क्षमता केवल 35 टन है।
इन डंपरों की पहचान तक स्थानीय ग्रामीणों द्वारा खनिज विभाग को दी गई है। आदिवासी संगठन के प्रमुख नेतृत्व कर्ताओं द्वारा वाहन नंबर तक उपलब्ध करवाए गए हैं।
“इनकी पहचान उजागर करके इन पर वैधानिक कार्यवाही क्यों नहीं हुई, यह बड़ा प्रश्न है”
माफिया की भाषा- “सब सेट है साहब”
प्रशासन को जब भी शिकायत की जाती है, माफिया खुलेआम कहते हैं, “हमने सब सेट कर रखा है, हमें कोई नहीं रोक सकता।” यह अहंकार इस बात का संकेत है कि अब यह केवल कानून तोड़ने का मामला नहीं रहा — यह चुनौती है प्रशासन की प्रतिष्ठा को!!
यदि अब भी कार्यवाही नहीं होती है, तो यह न केवल माफिया के हौसलों को बढ़ाएगा, बल्कि उस जनता का विश्वास भी डगमगाएगा, जिसने अपने जिले की अफसरशाही को दिल्ली तक सम्मानित होते देखा है।
(यह जानकारी हमारे विश्वसनीय सूत्रों, दिए गए ज्ञापनों, पत्रकार वार्ताओं, प्राप्त प्रेस नोट आदि के आधार पर प्रशासनिक संज्ञान एवं जन भावनाओं को प्रशासन तक पहुंचने के लिए उपयोग की गई है। जिला प्रशासन से दी गई जानकारी को विवेचना में लेकर जन भावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए निष्पक्ष जांच की जाने की अपील की जाती है। प्रस्तुत जानकारी का सत्यापन अथवा पुष्टि समाचार पत्र द्वारा नहीं की जाती)
हिमांशु त्रिवेदी, संपादक, भील भूमि समाचार, Reg.MPHIN/2023/87093